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क्रांतिसूर्य टंट्या भील विश्वविद्यालय (KTBU), खरगोन

मध्यप्रदेश शासन द्वारा उच्च शिक्षा को सुदृढ़ करने की दिशा में एक ऐतिहासिक पहल के अंतर्गत, क्रांतिसूर्य टंट्या भील विश्वविद्यालय (KTBU) की स्थापना खरगोन ज़िले में मध्यप्रदेश विश्वविद्यालय अधिनियम, 1973 के अंतर्गत की गई है। यह विश्वविद्यालय जननायक, समाजसेवी एवं स्वतंत्रता संग्राम सेनानी टंट्या मामा की स्मृति में स्थापित किया गया है।

यह विश्वविद्यालय निमाड़ अंचल के युवाओं को उच्च शिक्षा के नवीन अवसर प्रदान कर रहा है तथा बड़वानी, खरगोन, खंडवा, बुरहानपुर एवं अलीराजपुर जिलों के लगभग 35,000 छात्र-छात्राओं को प्रत्यक्ष रूप से लाभान्वित कर रहा है।

 क्रांतिसूर्य टंट्या भील विश्वविद्यालय को विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC), नई दिल्ली से UGC अधिनियम 1956 की धारा 2(f) के अंतर्गत मान्यता प्राप्त हो चुकी है, जिससे इसकी शैक्षणिक एवं वैधानिक स्थिति और अधिक सुदृढ़ हो गई है।

वर्तमान में विश्वविद्यालय के अधीन 80 महाविद्यालयों की संबद्धता हैं, जो विभिन्न स्नातक एवं स्नातकोत्तर पाठ्यक्रमों का संचालन कर रहे हैं। 

वर्तमान में विश्‍वविद्यालयीन अध्‍ययन शालाओं में संचालित पाठ्यक्रम:

• स्नातक स्तर पर : बी.ए. (B.A.), बी.कॉम. (B.Com.), बी.कॉम. (BFSI), बी.एससी. (B.Sc.) एवं बी.एससी. कृषि (B.Sc. Agriculture)

• स्नातकोत्तर स्तर पर : एम.ए. (अर्थशास्त्र) एवं पीजीडीसीए (PGDCA)

विश्वविद्यालय हेतु खरगोन-इंदौर रोड पर 127.56 एकड़ भूमि आवंटित की गई है। संबंधित भूमि का सीमांकन कार्य पूर्ण हो चुका है तथा विकास परियोजना रिपोर्ट (DPR) की प्रक्रिया जारी है। इसके उपरांत भवन निर्माण का कार्य मध्यप्रदेश भवन विकास निगम (म.प्र.भ.वि.नि.) द्वारा किया जाएगा।

भवन निर्माण एवं अन्य विकास योजनाओं के लिए ₹150 करोड़ रुपए की राशि राज्य शासन द्वारा स्वीकृत की गई है। साथ ही, आवश्यक शैक्षणिक एवं प्रशासनिक पदों की स्वीकृति एवं बजटीय प्रावधानों का भी अनुमोदन प्राप्त हो चुका है।

यह विश्वविद्यालय विशेष रूप से जनजातीय एवं पिछड़े वर्ग के युवाओं को गुणवत्तापूर्ण, सुलभ और समावेशी शिक्षा प्रदान करते हुए सशक्तिकरण की दिशा में एक प्रभावशाली एवं दूरदर्शी पहल सिद्ध हो रही है।

 

  • 4000

    undergraduate

  • 3000

    graduate

  • 7000

    Total students

The History of KTBU

The Madhya Pradesh government named the university after Tantya Bhil as a mark of respect for his role in the first Indian freedom struggle of 1857.